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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatGhazal}}<poem>गाँवों से चौपाल, बातों से हँसी गुम हो गयी।<br />सादगी, संज़ीदगी, ज़िंदादिली गुम हो गयी।१।<br /><br />क़ैद में थी बस तभी तक दासतानों में रही।<br />द्वारिका जा कर मगर वो देवकी गुम हो गयी।२।<br /><br />वो ग़ज़ब ढाया है प्यारे आज के क़ानून ने।<br />बढ़ गयी तनख़्वाह, लेकिन ग्रेच्युटी गुम गयी।३।<br /><br />चौधराहट के सहारे ज़िंदगी चलती नहीं।<br />देख लो यू. एस. की भी हेकड़ी गुम हो गयी।४।<br /><br />आज़ भी ‘इक़बाल’ का ‘सारे जहाँ’ मशहूर है। <br />कौन कहता है जहाँ से शायरी गुम हो गयी।५।<br /poem>
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