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नया पृष्ठ: हमारे संस्कार - वट वृक्ष यानि बरगद का पेड़<br /> यूँही नहीं बने हमारे …
हमारे संस्कार - वट वृक्ष यानि बरगद का पेड़<br />
यूँही नहीं बने हमारे संस्कार<br />
कुछ न कुछ तो है<br />
हर रीति रिवाज के पीछे<br />
ज़रूरत है<br />
उन्हें समझने की<br />
<br />
वट वृक्ष का<br />
हमारे रीति रिवाजों में<br />
काफ़ी अहम स्थान है<br />
यदि हम समझें<br />
और समझ कर मानने को<br />
उद्यत हों - तो<br />
<br />
वट वृक्ष<br />
यानि<br />
बरगद का पेड़<br />
इसलिए अहम नहीं<br />
कि उस में<br />
ब्रह्मा-विष्णु-महेश निवास करते हैं<br />
<br />
बल्कि इसलिए<br />
कि ये प्रतीक है<br />
दीर्घायु का<br />
<br />
ये सुंदर उदाहरण है<br />
वसुधैव कुटुम्बकम का<br />
<br />
ये सहारा है<br />
हर आते जाते पथिक का<br />
बिना किसी भी तरह के भेदभाव के<br />
<br />
बरगद का पेड़<br />
देखता रहता है<br />
पीढ़ियों को<br />
बच्चे से जवान<br />
और फिर बूढ़ा होते हुए<br />
और एक दिन<br />
उन्हें अपने असली गंतव्य तक जाते हुए भी<br />
<br />
हर बरगद<br />
एक एनसइक्लॉपीडिया है<br />
बदलते युगों का<br />
<br />
ज़रूरत है हमें<br />
जानकारियाँ<br />
उस से अर्जित करने की<br />
<br />
बरगद<br />
बदलते समय के साथ साथ<br />
कम हरा हुआ है<br />
<br />
बदलते सरोकारों के साथ<br />
बदला है<br />
उसका पता ठिकाना<br />
<br />
बदलते मूल्यों के साथ<br />
घटी हैं उस की जटायें भी<br />
<br />
और छोटा हुआ है<br />
उस का परिवार भी<br />
<br />
बरगद<br />
दर्ज हो रहा है<br />
डाक्टरेट्स में<br />
और हट रहा है<br />
जन जीवन से<br />
<br />
बरगद<br />
दूर हो कर हमारी पहुँच से<br />
पहुँचने लगा है<br />
सील पेक गत्ते के छोटे बड़े बक्सों में<br />
<br />
यूँही तो नहीं बनाया गया होगा<br />
बरगद को<br />
पूज्य<br />
वट सावित्री के व्रत से जोड़कर<br />
कुछ तो रहे होंगे कारण<br />
कुछ तो रहे होंगे प्रयोजन<br />
<br />
पर सच कहूँ तो मैं भी तो<br />
बस अनुमान ही लगा रहा हूँ ना<br />
काश दादी / नानी से पूछ पाता ये<br />
बनिस्बत पुस्तकों में पढ़ने के<br />
तो कहीं अच्छी तरह समझ पाता<br />
इस के औचित्य को<br />
<br />
हाँ<br />
ये सच है<br />
औचित्य अब हमें<br />
पुस्तकों से नहीं<br />
अपने<br />
सामान्य ज्ञान से<br />
खोज निकालने की आवश्यकता है...............<br />
यूँही नहीं बने हमारे संस्कार<br />
कुछ न कुछ तो है<br />
हर रीति रिवाज के पीछे<br />
ज़रूरत है<br />
उन्हें समझने की<br />
<br />
वट वृक्ष का<br />
हमारे रीति रिवाजों में<br />
काफ़ी अहम स्थान है<br />
यदि हम समझें<br />
और समझ कर मानने को<br />
उद्यत हों - तो<br />
<br />
वट वृक्ष<br />
यानि<br />
बरगद का पेड़<br />
इसलिए अहम नहीं<br />
कि उस में<br />
ब्रह्मा-विष्णु-महेश निवास करते हैं<br />
<br />
बल्कि इसलिए<br />
कि ये प्रतीक है<br />
दीर्घायु का<br />
<br />
ये सुंदर उदाहरण है<br />
वसुधैव कुटुम्बकम का<br />
<br />
ये सहारा है<br />
हर आते जाते पथिक का<br />
बिना किसी भी तरह के भेदभाव के<br />
<br />
बरगद का पेड़<br />
देखता रहता है<br />
पीढ़ियों को<br />
बच्चे से जवान<br />
और फिर बूढ़ा होते हुए<br />
और एक दिन<br />
उन्हें अपने असली गंतव्य तक जाते हुए भी<br />
<br />
हर बरगद<br />
एक एनसइक्लॉपीडिया है<br />
बदलते युगों का<br />
<br />
ज़रूरत है हमें<br />
जानकारियाँ<br />
उस से अर्जित करने की<br />
<br />
बरगद<br />
बदलते समय के साथ साथ<br />
कम हरा हुआ है<br />
<br />
बदलते सरोकारों के साथ<br />
बदला है<br />
उसका पता ठिकाना<br />
<br />
बदलते मूल्यों के साथ<br />
घटी हैं उस की जटायें भी<br />
<br />
और छोटा हुआ है<br />
उस का परिवार भी<br />
<br />
बरगद<br />
दर्ज हो रहा है<br />
डाक्टरेट्स में<br />
और हट रहा है<br />
जन जीवन से<br />
<br />
बरगद<br />
दूर हो कर हमारी पहुँच से<br />
पहुँचने लगा है<br />
सील पेक गत्ते के छोटे बड़े बक्सों में<br />
<br />
यूँही तो नहीं बनाया गया होगा<br />
बरगद को<br />
पूज्य<br />
वट सावित्री के व्रत से जोड़कर<br />
कुछ तो रहे होंगे कारण<br />
कुछ तो रहे होंगे प्रयोजन<br />
<br />
पर सच कहूँ तो मैं भी तो<br />
बस अनुमान ही लगा रहा हूँ ना<br />
काश दादी / नानी से पूछ पाता ये<br />
बनिस्बत पुस्तकों में पढ़ने के<br />
तो कहीं अच्छी तरह समझ पाता<br />
इस के औचित्य को<br />
<br />
हाँ<br />
ये सच है<br />
औचित्य अब हमें<br />
पुस्तकों से नहीं<br />
अपने<br />
सामान्य ज्ञान से<br />
खोज निकालने की आवश्यकता है...............<br />