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<Poem>
जीवन में एक बार
उसे जम्मू आकर तैरना है तवी में
यहाँ देश बटवारे से पहले
तेरा करते थे अब्बा
वह आ रहा है पकिस्तान से यहाँ
तवी के घाट पर
जैसे शरणार्थी - कैंप में मरे पिता की
अस्थियाँ लेकर गया था मै कश्मीर
मन ही मन
जहाँ बहती है मेरे पुरखों की नदी

वह आ रहा है अपने अब्बा की यादों के रास्ते
मलका पुखराज के मर्म तक
जिसकी आवाज़ से होता था
तवी में कम्पन
झूम उठते उसके आशिक
होतीं चिमेगोइयाँ
लगते ठहाके तवी के घात पर

मेरे दोस्त को उम्मीद है
उसे मिलेंगे तवी के पानी में
अब्बा के अक्स
जैसे मेरा बच्चा देखना चाहता है
कश्मीर जाकर

मेरे गाँव का स्कूल
जहाँ पड़ता था मैं
और पेड़ों पेड़ों करता उछलकूद
तोड़ता चोरी से वर्जित फल
मेरे गाँव का स्कूल
जहाँ पड़ता था मैं
और पेड़ों पेड़ों करता उछलकूद
तोड़ता चोरी से वर्जित फल

खुशकिस्मत हो दोस्त
तुम आ सकते हो पाकिस्तान से तवी के पास
और मै लौट नही सकता कश्मीर
</poem>
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