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<Poem>
जैसे हम कर चुके हों जीते जी
अपना क्रिया-कर्म
और अब म्रत्युन्जय नागरिक हैं
जैसे हम आये हों कुछ दिनों के लिए
अपने ही देश में सैलानियाँ कि तरह
और हमें किसी से क्या लेना देना
जैसे हमने युद्ध में दाल दिए हों
हथियार
और अब हो जो हो निर्विरोध

तुम भी नहीं जानती थीं मेरी तरह
इस देश के बारे में
अपने वतन से भागते हुए
हथेलियों में जान लिए </poem>
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