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नया पृष्ठ: आंखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए नींद आ गई तो ग़म के नज़ारे चले गए …
आंखों से दूर सुब्ह के तारे चले गए
नींद आ गई तो ग़म के नज़ारे चले गए

दिल था किसी की याद में मसरूफ़ और हम
शीशे में ज़िन्दगी को उतारे चले गए

अल्लाह रे बेखुदी कि हम उनके रू-ब-रू
बे-अख़्तियार उनको पुकारे चले गए

मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी का जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए

नाकामी-ए-हयात का करते भी क्या गिला
दो दिन गुज़ारना थे, गुज़ारे चले गए

जल्वे कहां जो ज़ौके़-तमाशा नहीं ‘शकील’
नज़रें चली गईं तो नज़ारे चले गए