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05:28, 11 अगस्त 2007 '''(आपको सन्त कबीर के नये दोहे मिलें तो उन्हें यहाँ जोड़ने का कष्ट करें।)'''
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हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार । <BR/>
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥ <BR/><BR/>
या दुनिया दो रोज की, मत कर या सो हेत । <BR/>
गुरु चरनन चित लाइये, जो पूरन सुख हेत ॥ 902 ॥ <BR/><BR/>
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर । <BR/>
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥ <BR/><BR/>