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अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है
रास्ता चलते मुलाक़ात हुआ करती है
 
उससे कहना के वो मौसम के न चक्कर में रहे
गर्मियों में भी तो बरसात हुआ करती है
दिन निकलता है तो चल पड़ता हूं सूरज की तरह
अब तो मज़हब की फ़क़त इतनी ज़रूरत है यहां
आड़ में इसके खुराफात हुआ करती है  उससे कहना के वो मौसम के न चक्कर में रहेगर्मियों में भी तो बरसात हुआ करती है