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Kavita Kosh से
अब हलो हाय में ही बात हुआ करती है
रास्ता चलते मुलाक़ात हुआ करती है
दिन निकलता है तो चल पड़ता हूं सूरज की तरह
अब तो मज़हब की फ़क़त इतनी ज़रूरत है यहां
आड़ में इसके खुराफात हुआ करती है उससे कहना के वो मौसम के न चक्कर में रहेगर्मियों में भी तो बरसात हुआ करती है