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14:04, 5 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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<poem>
ज़रा सा पास आओ तो , नज़र को भी नज़र आए
है कितनी रात यह काली, कहीं बिजली चमक जाए
मुहब्बत है अगर सच्ची, तो उसको नाम क्या देना
जिधर भी सांस लोगे तुम, हवा ख़ुशबू सी महकाए
लिखेगें नाम अपना हम, समुंदर की यूं लहरो पे
न आँधी ही, तूफाँ कोई, न बारिश ही मिटा पाए
किसी शायर के अच्छे शेर पे, जब दाद मिलती है
कली सिमटी हुई जैसे, चमन में फ़ूल बन जाए
मना लेंगे तुम्हे"आज़र",ख़फ़ा किस बात से हो तुम
सुना है जब तलक है जाँ, न होते हैं जुदा साए</poem>
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