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{{KKCatGhazal}}<Poem>(एक आज़ाद हिंदी कविता)
यादो के रंगों को कभी देखा है तुमनेकितने गहरे होते हैंकभी न छूटने वालेकपडे पर रक्त के निशान के जैसेमुद्दतों बाद आज आया हूँ मैंइन कालागढ़ की उजड़ी बर्बाद वादियों मेंजो कभी स्वर्ग से कहीं अधिक थींजाति धर्म के झंझटों से दूरसोहार्द सदभावना प्रेम की पावन रामगंगातीन बेटियों और एक बेटे का पिता हूँ मैं आजपरन्तु इस वादी मे आकरये क्या हो गयाकौन सा जादू हैवही पगडंडी जिस पर कभीबस्ता डाले कमज़ोर कन्धों परजूते के फीते खुले खुले सेबाल सर के भीगे भीगे सेस्कूल की तरफ भागता ,वापसी मेसुकासोत की ठंडी रेट परजूते गले में डालेनंगे पैरों पर वो ठंडी रेत का स्पर्शसुरमई धुप मेआवारा घोड़ोंऔर कभी कभी गधों कोहरी पत्तियों का लालच देकर पकड़ताऔर उन पर सवारी करताअपने गिरोह के साथ डाकू गब्बर सिंहरातों को क्लब कीनंगी ज़मीन पर बैठ फिल्मे देखताशरद ऋतू में रामलीला मेंवानर सेना कभी कभीमजबूरी में बे मन से बनारावण सेना का एक नन्हा सिपाहीऔर ख़ुशी ख़ुशी रावण की हड्डीया लेकरभागता बचपन मिल गयाआज मुद्दतों पहलेखोया हुआचाँद मिल गया '''आदिल रशीद उर्फ़ चाँद C-824 work charge colony, kalagarh''' नोट :कालागढ़ का डैम रामगंगा नदी पर बना है। पिताजी ने बताया था कि शुरू में इसका नाम रामगंगा नगर रखा जाना था बाद में वहां के एक मशहूर फकीर कालू शहीद बाबा के नाम पर इसका नाम कालागढ़ पड़ा। कालू शहीद बाबा कि दरगाह कालागढ़ से कोटद्वार मार्ग पर पहाड़ों के बीच मोरघट्टी नाम कि जगह पर है
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