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|रचनाकार='अना' क़ासमी
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<poem>
मेरा खूने-जिगर होने को है फिर
कोई तिरछी नज़र होने को है फिर
तख़य्युल अब मुजस्सम हो चला है
‘अना’ तू बेहुनर होने को है फिर</poem>
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