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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
आज कल तो रास्ता अँधे भी दिखलाने लगे
लो अँधेरे रौशनी का मर्म समझाने लगे
ऐ 'अकेला' अब तो बेशर्मी की भी हद हो गई
जन्म के झूठे हमें सच्चाई सिखलाने लगे</poem>