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विदा करना करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?
कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
इस घर से ही नाता
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