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विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं,  ::न्याय यही कहलाता ?
सीता को ही दुःख दिखलाये
::क्यों नित नए विधाता ?
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
::कोई तो समझाता ! 
तब वन में था बल स्वामी का
अब तो छूट रहा भगिनी का
::इस घर से ही नाता !