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विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल
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08:53, 19 सितम्बर 2007
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं
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न्याय यही कहलाता ?
सीता को ही दुःख दिखलाये
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क्यों नित नए विधाता ?
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
::
कोई तो समझाता !
तब वन में था बल स्वामी का
अब तो छूट रहा भगिनी का
::
इस घर से ही नाता !
Lalit Kumar
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