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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मैं खोज रहा हूँ तुमको
अपने बेनूर-से कमरे के भीतर
जाने तुम छुप गई कहाँ जाकर
तेरी तलाश में क्या-क्या नहीं मिला मुझको
खामोश लम्बी रात
आधी-सी एक बात
बिखरा हुआ बिस्तर
चौड़ी-सी एक चादर
होठों की सुगबुगाहट
अधुरी-सी एक करवट
कच्चे लम्हों की कतरन
कुछ नुची हुई धड़कन
रंगीन फर्श पर फैला पानी
कहीं सफेद कहीं मैला पानी
जले लबों से गुनगुनाता ग्लास
अंगुलियों का सूखा-सा एहसास
चंद सिगरेट के अधजले टुकड़े
और एक टूटी हुई डिबीया
तेरी तलाश में क्या-क्या नहीं मिला मुझको
जाने तुम छुप गई कहाँ जाकर
अपने बेनूर-से कमरे के भीतर
मैं खोज रहा हूँ तुमको
<Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
मैं खोज रहा हूँ तुमको
अपने बेनूर-से कमरे के भीतर
जाने तुम छुप गई कहाँ जाकर
तेरी तलाश में क्या-क्या नहीं मिला मुझको
खामोश लम्बी रात
आधी-सी एक बात
बिखरा हुआ बिस्तर
चौड़ी-सी एक चादर
होठों की सुगबुगाहट
अधुरी-सी एक करवट
कच्चे लम्हों की कतरन
कुछ नुची हुई धड़कन
रंगीन फर्श पर फैला पानी
कहीं सफेद कहीं मैला पानी
जले लबों से गुनगुनाता ग्लास
अंगुलियों का सूखा-सा एहसास
चंद सिगरेट के अधजले टुकड़े
और एक टूटी हुई डिबीया
तेरी तलाश में क्या-क्या नहीं मिला मुझको
जाने तुम छुप गई कहाँ जाकर
अपने बेनूर-से कमरे के भीतर
मैं खोज रहा हूँ तुमको
<Poem>