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Kavita Kosh से
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया
हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया
सारे जग क़ी प्यास बुझाना इतना आसाँ काम है क्या
पानी को भी भाप में ढल कर बादल बनना पड़ता है
कहता किसी से क्या क़ी कहाँ घूमता फिरा
सब लोग सो गए तो मैं चुपके से घर गया
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