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Kavita Kosh से
गुनगुनी धूप है
गुनगुनी छाँह है.
एक तन एक मन
एक वातावरण,
मन में जागी मिलन की
अमिट चाह है.
नींद में हम मिलें
स्वप्न में हम मिलें
हमको जग की नहीं
आज परवाह है.
चिट्ठियाँ जो लिखीं
संधियाँ जो रचीं
कल्पना में पगी
प्यार की राह है.
दो घड़ी बैठ कर
दो घड़ी बोल कर