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कि जैसे गॉंव की बगिया में
कोयल गीत गाती हो
उनींदे स्वप्न स्वप्न के परचम
फहरते रोज नींदों में
तुम्हारी सॉंवली सूरत
बगल में मुस्काराती हो
भटकते चित्त् चित्त को विश्वास का
एक ठौर मिल जाए
मुहब्बत के चरागों को