भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहीं कोई नदी होती / ओम निश्चल

3 bytes added, 17:32, 19 सितम्बर 2011
कि जैसे गॉंव की बगिया में
कोयल गीत गाती हो
उनींदे स्वप्न स्‍वप्न के परचम
फहरते रोज नींदों में
तुम्हारी सॉंवली सूरत
बगल में मुस्काराती हो
तुम्हारे तुम्हांरे साथ इक लंबे सफर पर फिर गुज़रना हो।
भटकते चित्त् चित्त को विश्वास का
एक ठौर मिल जाए
मुहब्बत के चरागों को
70
edits