भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> फूलों के गॉंव फसल…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
फूलों के गॉंव
फसलों के गॉंव
आओ चलें गीतों के गॉंव।
महके कोई रह रह के फूल
रेशम हुई राहों की धूल
बहती हुई अल्हड़ नदी
ढहते हुए यादों के कूल
चंदा के गॉंव
सूरज के गॉंव
आओ चलें तारों के गॉंव।
पीपल के पात महुए के पात
ऑंचल भरे हर पल सौगात
सावन झरे मोती के बूँद
फागुनी धूप सहलाए गात
पीपल की छॉंव
निबिया की छॉंव
आओ चलें सुख-दुख की छॉंव।
नदिया का जल पोखर का जल
मीठी छुवन हर छिन हर पल
गुज़रे हुए बासंती दिन
अब भी नहीं होते ओझल
भटकें नहीं
लहरों के पॉंव
आओ चलें रिश्तों की नाव।
<Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ओम निश्चल
|संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet}}
<Poem>
फूलों के गॉंव
फसलों के गॉंव
आओ चलें गीतों के गॉंव।
महके कोई रह रह के फूल
रेशम हुई राहों की धूल
बहती हुई अल्हड़ नदी
ढहते हुए यादों के कूल
चंदा के गॉंव
सूरज के गॉंव
आओ चलें तारों के गॉंव।
पीपल के पात महुए के पात
ऑंचल भरे हर पल सौगात
सावन झरे मोती के बूँद
फागुनी धूप सहलाए गात
पीपल की छॉंव
निबिया की छॉंव
आओ चलें सुख-दुख की छॉंव।
नदिया का जल पोखर का जल
मीठी छुवन हर छिन हर पल
गुज़रे हुए बासंती दिन
अब भी नहीं होते ओझल
भटकें नहीं
लहरों के पॉंव
आओ चलें रिश्तों की नाव।
<Poem>