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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
औरों के भी दिलों की जो पीर जानता है
सच है वही ग़ज़ल की तासीर जानता है

उल्फ़त तो ज़िन्दगी की वुसअ़त का सिलसिला है
पागल है वो जो इसको ज़ंजीर जानता है

रहने दे मुस्कुराकर नाराज़गी छुपा मत
ये दिल तेरी नज़र की तक़रीर जानता है

वो है अमीर लड़की, तू है ग़रीब लड़का
तिरे ख़्वाब की है मुश्किल ताबीर जानता है ?

नाकामियाँ भुला कर फिर कोशिशें करेगा
वो कामयाबियों की तदबीर जानता है

ये हाथ की लक़ीरें पढ़ने की बात छोड़ो
दुनिया में कौन किसकी तक़दीर जानता है

कुछ भी छुपाना मुश्किल शायर है वो ‘अकेला’
चेहरे की भी वो आखि़र तहरीर जानता है
<poem>
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