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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
कभी नयन को नम कर जातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ
कभी सुमन सा मन को खिलातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ

भले भुला दे तू मुझको, ना प्रीत निभा मुझसे तू मगर
सदा ही मुझसे प्रीत निभातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ

कभी छुरी बन कर देती हैं मेरा कोमल हृदय विदीर्ण
मगर कभी मरहम बन जातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ

कभी गीत बन जाता है तो हो जाती है कभी ग़ज़ल
हृदय से जब काग़ज़ पर आतीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ

मुझे ‘अकेला’ छोड़ के जाना है इनको स्वीकार नहीं
नया राग रिश्तों का सुनातीं प्रेयसि तेरी स्मृतियाँ
<poem>
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