भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कह रहा था मात खा सकता हूँ थक सकता हूँ मैं
है सारे तसलीम ख़ म <sup>1</sup> ख़म<sup>2</sup> तेरी हुकूमत के हुज़ूर
एक हद तक ही मगर पीछे सरक सकता हूँ मैं
अब इसे गर्काब <sup>3</sup> करने का हुनर भी सीख लूँ
इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं
1- स्वीकार
2- मुड़ाव, कमी
3- डुबाना
</poem>