भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कह रहा था मात खा सकता हूँ थक सकता हूँ मैं
है सारे तसलीम ख़ म <sup>1</sup> ख़म<sup>2</sup> तेरी हुकूमत के हुज़ूर
एक हद तक ही मगर पीछे सरक सकता हूँ मैं
अब इसे गर्काब <sup>3</sup> करने का हुनर भी सीख लूँ
इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं
 
1- स्वीकार
2- मुड़ाव, कमी
3- डुबाना
</poem>
25
edits