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|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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<poem>थारी सांसां काची झाग, संभाळ’र राख
औ है थारो धन अर भाग, संभाळ’र राख

दूजा नईं बरजै तो कांई, तूं तो बरज
थारो है थारो औ बाग, संभाळ’र राख

ईं रोसणी री चमक में गमग्या भला-भला
सोगरा’र फोफळिया साग, संभाळ’र राख

भूल्यां किंयां सरै बदळो तो लेणो पड़सी
छाती माथै लाग्यो दाग, संभाळ’र राख

बुझूं-बुझूं है तो कांई, इंयां ना फेंक तूं
कदै काम आसी आ आग, संभाळ’र राख</poem>
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