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|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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<poem>धूड़ है जीणो जे नीं घर अठै
आ सोच परो बांध्यो म्हैं घर अठै

दो जणा मिलता जद आ कैवता
हालो हालां आपणो घर बठै

हरख बधाया हुई इण आंगणै
घराळां नै हुयो छोटो घर अठै

चूंच में दाणो ले चिड़ी बोली
रांधसूं, खणासूं, खासूं घर जठै

ऐ नुंवा कमरा ऐ नुंवी भींतां
खाली आं सूं हुवै घर घर कठै</poem>
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