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तहरीर चौक पर आओ / सुहास बोरकर

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तहरीर चौक पर आओ
शांतिपूर्ण क्रांति के चश्मदीद बनो
यहाँ शहीदों की ताजे स्मारकों को नमन करो
जहाँ हज़ारों-हज़ार अपनी ज़मीन पर डटे रहे
बर्बर सत्ता के विरुद्ध नैतिक साहस को देखो
देखो पीटने, छुरा धोंपने और मारने भेजे गए घुड़सवार गुंडों की वापसी
गवाह बनो अहिंसक आंदोलन की जीत के

तहरीर चौक पर आओ
इंटरनेट से एकजुट हुए लोगों की नब्ज पहचानो
मानवाधिकार और न्याय को फिर जीवित करते हुए
दमन की कथाएँ दुहराते हुए सुनो
देखो डाकुओं और लुटेरों को बेनकाब होते
जनता की गरिमा की बहाली के गवाह बनो

तहरीर चौक पर आओ

सत्य की पताका फहराती लोकसत्ता की लहरों पर सवार

हुक्मरानों के भेजे टेंकों की तोपों को सलामी में झुकते देखो

दमन की विशाल इमारत को धूल में मिलते देखो
देखो 30 साल के तानाशाह मुबारक को 18 दिन में भागते हुए
लोगों की इच्छाओं की विजय के गवाह बनो

तहरीर चौक पर आओ
अपने हृदय में क्रांति का रक्त लिए
और अपने होंठों पर क्रांति के गीत के साथ
पर अभी जश्न मत मानाओ
न विजय गीत गाओ, न नाचो
कि आजादी और जनतंत्र का सफर अभी शुरू हुआ है
रात को जागते रहना ज़रूरी है
नई सुबह तक

यह कभी न पूछना कि क्या होगा अगर तुम हार गए?
इतिहास की घड़ी तुम्हारे साथ है
तुम्हारा हर बढ़ता कदम आव्हान करता है
हर तरफ लाखों पीड़ितों से उठ खड़े होने का
कल हम सब आज़ाद होंगे!
कल हम सब आज़ाद होंगे!
</poem>

अंग्रेजी से रूपांतरण- हेमंत जोशी
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