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मियों का गौ प्रेम / निशान्त

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{{KKCatKavita‎}}<poem>हिन्दू कितना ही
कहते फिरें
गाय को माता
पालते-पोसते हैं
ज्यादा भैसें ही
जबकि इधर के मिएं हैं
गायों के ही दीवाने
खूब पालते हैं
देसी राठी गाएं
अकाल पड़ जाये तो
बीकानेर, खाजूवाला,
महाजन से लेकर इन्हें
चले जाते हैं
पंजाब-हरियाणा
देखता ही रहता हूं
अक्सर इनके श्टोश्
आते-जाते
आध-आध कोस
लम्बे होते हैं
घेर कर चलती हैं
गाएं पूरी की पूरी सड़क
परेशानी हो
वाहनों वालों को तो हो
इन्हें इसकी कोई
परवाह नहीं
क्योंकि इस देश का
आदमी
गायों की वजह से
होने वाली परेशानी से
भीतर से कितना ही
उबाल खाए हो
बाहर से ठंडा ही रहता है
कहें इन मियों से कि
भाई, एक-आध गाय
हमें भी दे जाओ
तो कहते हैं
नहीं! नहीं!
बेचने के लिए नहीं है
हैरान हूं
न तो दूहने के लिए
उनके पास बाल्टी है
न बिलौने के लिए ’बिलौना’
बछड़े भी
नहीं देते दिखाई
लगता है
सब ष्हीणीष् हैं
फिर भी लगाए
फिर रहे हैं
कलेजे से।
</poem>
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