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बड़ों के बीच / निशान्त

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{{KKCatKavita‎}}<poem>बड़ी-बड़ी सड़कें
बड़ी-बड़ी कारें
बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ
बड़े-बड़े पेट्रोल पम्प
बड़े-बड़े होटल
बड़े-बड़े शहर
बड़ी-बड़ी दुकानें
बड़े-बड़े संस्थान
बड़े-बड़े कॉम्पलेक्स
बड़े-बड़े राजनेता
बड़े-बड़े पण्डाल
बड़े-बड़े गुरुजी
हो रहा है बड़़ा गांव भी
छोटा रह गया बस
इन्सान।
</poem>
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