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07:36, 23 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैया लाल भाटी
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}<poem>ओ आभो
थे जाणो जित्तो
सूनो नीं है,
ओ तो समदर है-
ऊंधो पळटिज्योड़ो
जिण में तिरै
ठाह नीं किण री
बादळां नांव सूं नावां।
</poem>