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तन्त्र और जन / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
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06:21, 25 अक्टूबर 2011
<Poem>
एक लाश पर ढही हुई औरत
::
:::बिलखती है
सिसकते हैं बच्चे
एक भीड़ चिल्लाती है
::
:::और ख़ामोश हो जाती है
तन्त्र की बहबूदी के लिए
अनिल जनविजय
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