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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुब...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
ख़ाली खोखा है महज एक भी न काड़ी(1) है
तुमने माचिस भी जुगाड़ी(2)तो क्या जुगाड़ी है
काश मिल जाये तेरे प्यार की हरी झंडी
दिल की पटरी पे उमीदों की मालगाड़ी है
बाब(3)नफ़रत के नयी जिल्द में सजेंगे फिर
फिर मुहब्बत की किसी ने किताब फाड़ी है
वो दरख़्तों की हिफ़ाज़त को घर से निकले हैं
पूछना चाहिए क्यों हाथ में कुल्हाड़ी है
मैंने टोका जो ग़लत चाल पे तो कहने लगे
ठीक से खेल, अभी तू नया खिलाड़ी है
बीस मधुमास भी देखे नहीं अभी उसने
हाय इस उम्र में तन पर सफ़ेद साड़ी है
झूठ को सच की तरह बोलना न आया उसे
लोग कहते हैं ‘अकेला’ बहुत अनाड़ी है
--------------
शब्दार्थः-
(1) माचिस की तीली
(2) व्यवस्था करना/पूरक व्यवस्था
(3) अध्याय
<poem>
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ख़ाली खोखा है महज एक भी न काड़ी(1) है
तुमने माचिस भी जुगाड़ी(2)तो क्या जुगाड़ी है
काश मिल जाये तेरे प्यार की हरी झंडी
दिल की पटरी पे उमीदों की मालगाड़ी है
बाब(3)नफ़रत के नयी जिल्द में सजेंगे फिर
फिर मुहब्बत की किसी ने किताब फाड़ी है
वो दरख़्तों की हिफ़ाज़त को घर से निकले हैं
पूछना चाहिए क्यों हाथ में कुल्हाड़ी है
मैंने टोका जो ग़लत चाल पे तो कहने लगे
ठीक से खेल, अभी तू नया खिलाड़ी है
बीस मधुमास भी देखे नहीं अभी उसने
हाय इस उम्र में तन पर सफ़ेद साड़ी है
झूठ को सच की तरह बोलना न आया उसे
लोग कहते हैं ‘अकेला’ बहुत अनाड़ी है
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शब्दार्थः-
(1) माचिस की तीली
(2) व्यवस्था करना/पूरक व्यवस्था
(3) अध्याय
<poem>