भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ग़ैर के घर में टहलती है कहो कैसे हँसूं
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
करके ईमानों को बेघर बेईमानी आजकल
शान से महलों में पलती है कहो कैसे हँसूं
ज़िन्दगानी हाथ मलती है कहो कैसे हँसूं
338
edits