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जीवन / आरसी प्रसाद सिंह

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चलता है, तो चल आँधी-सा ; बढता जा आगे तू!
जलना है, तो जल फूसों-सा ; जीवन में करता धू-धू!

क्षणभर ही आँधी रहती है ; आग फूस की भी क्षणभर!
किन्तु उसी क्षण में हो जाता जीवन-मय भू से अम्बर!

मलयानिल-सा मंद-मंद मृदु चलना भी क्या चलना है?
ओदी लकड़ी-सा तिल-तिल कर जलना भी क्या जलना है?
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