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{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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<poem>
हमने ख़ुद अपने ही हाथों से जलाईं हसरतें
जब हमारी बेबसी पर मुस्करायीं हसरतें

इक तरफ खुद्दार के क़दमों तले रौंदी गईं
और कहीं खुद्दरियों को बेच आईं हसरतें

सबकी आँखों में तलब के जुगनू लहराने लगे
इस तरह से क्या किसी ने भी बताईं हसरतें

तीरगी, खामोशियाँ, बैचेनियाँ, बेताबियाँ
मेरी तन्हाई में अक्सर जगमगायीं हसरतें

मेरी हसरत क्या है मेरे आंसुओं ने कह दिया
आपने तो शोख रंगों से बनाईं हसरतें

सिर्फ तस्वीरें हैं, यादें हैं, हमारे ख़्वाब हैं
घर की दीवारों पे हमने भी सजाईं हसरतें

इस खता पे आज तक 'श्रद्धा' है शर्मिंदा बहुत
एक पत्थरदिल के क़दमों में बिछायीं हसरतें
</poem>
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