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04:31, 19 नवम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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<poem>
हाल दिल का अपने घर में तुम सुना कर देखो
जान उन लोगों  से फिर अपनी बचा कर देखो 
चूम लेंगे बढ़  के  इन हाथों  को  दुनिया वाले
काम सच्चे मन से दुखियों के भी आ कर देखो
तीर  सीधा  है  लगेगा  अब  निशाने पर  ही 
डोर को  खींचो कमाँ  पर  तो  चढ़ा कर देखो 
इश्क  की  राहें  नहीं  होतीं  हैं आसाँ फिर भी
अपने  कदमों  को सफ़र में आज़मा  कर देखो
साफ  तुमको भी  दिखाई  देगा इन आँखों से
धूल  का  पर्दा  ज़रा "आज़र" हटा कर  देखो
<poem>