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Kavita Kosh से
<poem>
सपना सही तुम्हारा
रहोगे देखते जब तक
मेरे बन्दी रहोगे तुम—
देखोगे नहीं तो भला
कैसे रह सकोगे ईश्वर
मुझ ही में है तुम्हारी
बाँध पाता है जो सपना