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Kavita Kosh से
<p>हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह |</p>कि ताबे गिजां <p>न दारमनींद नैना, ऐजां ना अंग चैना</p><p>ना आप आवें, न लेहू काहे लगाए छतियां ॥भेजें पतियां ||</p><br><p>बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर</p>शबाने हिजां दाज यूं व रोजे ।<p>कि दाद मारा, गरीब खुसरौ |</p><p>सपेट मन के, वराये राखूं</p>वसतल चू इम्र कोतह । सखी<p>जो जाये पांव, पिया तो जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अन्धेरी रतियां ॥के खटियां ||</p>