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17:00, 12 दिसम्बर 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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<poem>
कानन में बोलि रहे गैयन के गोलन में,
मोर मुकुट माथे देख चन्द्रमा लजाय जात।
ऐसी छबि जांकी कबि बरनन करेगो कहाँ,
सारद मति थाकी वेद ब्रह्मा गुण गाय जात।
कहे शिवदीन दीनबन्धु जग जाने तुम्हे,
दीनबन्धु होके क्यूँ मोको भरमाय जात।
याते लर्ज-लर्ज कहूँ अर्ज तो सुनोहीगे,
आवो क्यूँ ना प्राणनाथ प्राण अकुलाय जात।
<poem>