{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अदम गोंडवी}}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>जुल्फ - अंगडाई - तबस्सुम - चाँद - आईना -गुलाब
भुखमरी के मोर्चे पर ढल गया इनका शबाब
पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुर्सत है पढ़े दिल की किताब क़िताब इस सदी की तिश्नगी का ज़ख्म ज़ख़्म होंठों पर लिए बेयक़ीनी के सफ़र में ज़िंदगी है इक अजाब डाल पर मजहब मज़हब की पैहम खिल रहे दंगों के फूल सभ्यता रजनीश के हम्माम में है बेनक़ाब
चार दिन फुटपाथ के साये में रहकर देखिए
डूबना आसान है आंखों आँखों के सागर में जनाब</poem>