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|संग्रह=पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब / ज्यून तकामी
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<poem>
शुरू-शुरू में
 
एक ही रास्ते पर घूमना
 
बड़ा उबाऊ लगता था मुझे
 
लेकिन धीरे-धीरे
 
मैं उसका आदी होता गया
 
उस रास्ते पर घूमना
 
मुझे अच्छा लगने लगा
 
एक नया ही दृश्य मैं देखता
 
हर दिन
 
अपने उस परिचित रास्ते पर
 
आज सवेरे
 
उस जनविहीन रास्ते के किनारे
 
मैंने कुछ घंटीनुमा फूलों को खिले हुए देखा
 
मेरे मन में बजने लगी हज़ारों घंटिया अचानक
 
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</Poem>
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