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 प्रेम किये जा प्रेम हैबसाया बस रहा, नहीं नगर डगर प्रेम में पापप्रेम,बसा प्रेम अपने हृदय तन मन उर में आपो आप।, बन में बसा, नर में घर में प्रेम।उर नर में आपो आपघर में प्रेम, राम को प्रेम पियारा है प्यारे हर में,बिना कृष्ण नाम में प्रेम के जगत खुष्क , प्रेम है कडवा-खारा। सीतावर में।शिवदीन जल में थल में प्रेम फल है अमी, मीठा प्रेमी स्वादप्रेम जहां नहीं नेम,शिवदीन नेममय प्रेम किये तें हो गये कितने है, घर प्रेम आबाद।प्रेममय प्रेम। राम गुण गायरे।।
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