भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
ढलक रही है हो तन के घट से, संगिनी संगिनि,जब जीवन -हाला,<br>पत्र पात्र गरल का ले जब अंतिम साकी है हो आनेवाला,<br>हाथ स्पर्श परस भूले प्याले का, स्वाद -सुरा जीव्हा भूले,<br>कानो कानों में तुम कहती रहना, मधु का मधुकण,प्याला ,मधुशाला।।८१।<br><br>
मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल तुलसी-दल,प्याला,<br>मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल , हाला,<br>मेरे शव के पीछे चलने वालों , याद इसे रखना-<br> राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२।<br><br>
मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला<br>