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14:18, 25 जनवरी 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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समझ मन समझायेगा कौन ।
पेड आम का लगे बिना ही फल खायेगा कौन।
सतगुरू संत ईसारा करते दूध से पानी न्यारा करते,
पुन्य उदय करते है साधू पाप ताप अघ धौन।
ये परतीत प्रेम मय रीती धन्य आतमा अमृत पीती,
प्रेम भक्ति बिन सब सुख फीका जस बिंजन बिन नौन।
मूल कल्पतरु है सतसंगत जैसे भाव रंगे सोही रंगत,
भगवत कृपा सुसंगत पावे और बात सब गौन।
आनन्द भरा सुख सत्य बात में दरसत है प्रभु पात-पात में,
कहे शिवदीन साधना सच्ची राम भजो रहि मौन।
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