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'''"मैं नहीं जानती की तुम जीवित हो या मर गए”'''

मैं नहीं जानती की तुम जीवित हो या मर गए-
इस धरा पर, क्या तुम्हें खोजा जा सकता है ?
अथवा सिर्फ शाम की धुंधली छटा में
शोक संतप्त होकर याद करके ........

सब कुछ तुम्हारे लिए ; रोज की प्रार्थना,
गर्म रात्रि की अकुलाहट,
मेरी कविताओं की सफेद उड़ान,
और मेरी आँखों के नीले अंगारे ....

मेरा कोई अंतरंग नहीं था,
नहीं सताया किसी ने मुझे इस तरह,
वो भी नहीं, जिसने मुझे धोखा दिया,
वो भी नहीं, जिसने करीब आ कर भुला दिया मुझे ...

१९१५.

अनुवाद : [गौतम कश्यप]https://www.facebook.com/gautam.kashyap
रूसी भाषा से अनूदित