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05:26, 7 फ़रवरी 2012 <poem>हमें चाँदनी -
चौक ,मुम्बई और
नहीं भोपाल चाहिए |
हम किसान
बुनकर के वंशज
हमको रोटी -दाल चाहिए |
हथकरघों से
सपने बुनकर
हम कबीर के पद गाएंगे ,
युगों -युगों की
भ्रान्ति तोड़ने
काशी से मगहर जाएंगे ,
हमें एक
सारंगी साधो
झाँझ और करताल चाहिए |
हम किसान हैं
कठिन जिन्दगी
फिर भी हर मौसम में गाते ,
धूप -छाँह से ,
नदी -पहाड़ों से
हैं अपने रिश्ते -नाते ,
सूखे खेत
बरसना मेघों
हमको नहीं अकाल चाहिए |
आप धन्य !
जनता के सेवक
रोज बनाते महल -अटारी .
भेष बदलकर
भाव बदलकर
हमको छलते बारी -बारी ,
परजा के
हिस्से महंगाई
राजा को टकसाल चाहिए |</poem>