भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
राम जी !
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,
कड़कती हैं बिजलियां बिजलियाँ
मेरा भी मन डरता है
ठीक तुम्हारी तरह
प्रिया से दूर हूं हूँ मैंइंद्रप्रस्थ में एकाकी.
</Poem>