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Kavita Kosh से
<poem>भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया
इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए