सूरस्याम प्रभु इंद्र-नीलमनि, ब्रज-बनिता उर लाइ गही री ॥<br><br>
भावार्थ ;-- आज शोभाके शोभा के समुद्र का पार नहीं रहा । नन्दभवन में वह पूर्णतः भरकर अब व्रजकीगलियों व्रज की गलियों में उमड़ता बहता जा रहा है । आज गोकुल में जाकर देखा कि (शोभाकी शोभा की अधिदेवता लक्ष्मी ही) घर घर दही बेचती घूम रही है । अनेक प्रकार से बनाकर कहाँतक कहाँ तक कहूँ, सहस्त्रों मुखों से वर्णन करने पर भी पार नहीं मिलता है । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि सभी ने इसी प्रकार कहा कि यशोदाजी यशोदा जी की कोखरूपी अथाह सागर से मेरे प्रभुरूपी इन्द्रनीलमणि उत्पन्न हुई, जिसे व्रजयुवतियों ने हृदय से लगाकर पकड़ रखा है (हृदयमें हृदय में धारण कर लिया है।)