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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
|संग्रह=
}}
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<poem>
इन्तज़ार ए सुबह ए नो है शाम से
रात कट जाए कहीं आराम से
जल उठे दिल में उम्मीदों के चिराग़
दी मुझे आवाज़ किसने बाम से
कारोबार ए ज़िन्दगी चलता रहा
इक मुसलसिल कोशिश ए नाकाम से
और कितनी दूर है मंज़िल अभी
पूछता हूँ लग़ज़िश ए हर गाम से
कूबकू सहरा ब सहरा दर ब दर
हम रहे आवारा ओ बदनाम से
इशरत ए आग़ाज़ का अन्दाज़ा कर
ऐ दिल ए मुज़तर ग़म ए अन्जाम से
तोड़ ही दी हमने तोबा ऐ ज़िया
तंग आकर गरदिश ए अय्याम से
</poem>
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|संग्रह=
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इन्तज़ार ए सुबह ए नो है शाम से
रात कट जाए कहीं आराम से
जल उठे दिल में उम्मीदों के चिराग़
दी मुझे आवाज़ किसने बाम से
कारोबार ए ज़िन्दगी चलता रहा
इक मुसलसिल कोशिश ए नाकाम से
और कितनी दूर है मंज़िल अभी
पूछता हूँ लग़ज़िश ए हर गाम से
कूबकू सहरा ब सहरा दर ब दर
हम रहे आवारा ओ बदनाम से
इशरत ए आग़ाज़ का अन्दाज़ा कर
ऐ दिल ए मुज़तर ग़म ए अन्जाम से
तोड़ ही दी हमने तोबा ऐ ज़िया
तंग आकर गरदिश ए अय्याम से
</poem>