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दिल की बिसात क्या थी / सीमाब अकबराबादी
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03:12, 20 फ़रवरी 2012
इमकां एक और ज़ुल्म है क़ैद-ए-मुहाल में<br><br>
आज़ुरदा
आज़ुर्दा
इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से<br>
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में<br><br>
द्विजेन्द्र द्विज
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