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इमकां एक और ज़ुल्म है क़ैद-ए-मुहाल में<br><br>
आज़ुरदा आज़ुर्दा इस क़दर हूँ सराब-ए-ख़याल से<br>
जी चाहता है तुम भी न आओ ख़याल में<br><br>