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ख़ुद को पहचानता नहीं हूँ मैं
तुझ को अपना रहा नहीं हूँ मैं
 
अपनी ही ज़ात में हूँ खोया हुआ
तुझ से लेकिन जुदा नहीं हूँ मैं
 
है कमी भी, बुराई भी मुझ में
आदमी हूँ ख़ुदा नहीं हूँ मैं
 
तेरे होने का है यक़ीं मुझ को
तूने क्या कह दिया नहीं हूँ मैं
 
क्यूँ उठाते हो बज़्म ए इशरत से
साज़ ए ग़म की सदा नहीं हूँ मैं
 
दिल को ये कह के क्यूँ न खुश कर लूँ
ग़म से ना आशना नहीं हूँ मैं
 
मैं हूँ दीदार जू, नकाब उठाओ
देख लो आइना नहीं हूँ मैं
 
ज़ीस्त की आँख से न जो टपका
क़तरा वो खून का नहीं हूँ मैं
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