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न हुई ख़त्म शब, सहर न हुई
इक दुआ भी तो बा असर न हुई
 
आसमाँ चुप, ज़मीं सरअफ़गन्दा
मर गया दिल, उन्हें ख़बर न हुई
 
हाए तूल ए शब ए फ़िराक़, ऐ दोस्त
ग़म कि रूदाद मुख़्तसर न हुई
 
दूर करती जो यास कि ज़ुल्मत
शम्मा रोशन वो मेरे घर न हुई
 
मुल्तफ़ित मुझ पे दुनिया क्या होती
मेरी जानिब तिरी नज़र न हुई
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